diya delhi

diya diaries article

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प्रिय साथियों…. प्रणाम 🙏
         

मेरा नाम Gaurav Vatsal है! मैं Diya Delhi का एक volunteer हूँ! इस बर्ष “64th Bpsc” मे मेरा. “चयन आपूर्ति” निरीक्षक के पद पर हुआ है.!..दोस्तो आज मैं अपनी सफलता की यात्रा को आपलोगों के साथ साझा करने जा रहा हूं.. अपनी पृष्ठभूमि से लेकर शिक्षा – दीक्षा.. चुनौतियाँ…. गुरु सत्ता से जुड़ाव…. दिव्य अनुभूतियां.. दिया दिल्ली.. बहुत कुछ…..! 

मेरे मित्र.. मैं बिहार के पटना जिले के सुदूर ग्रामीण इलाके का रहने वाला हूँ! हमारी जन्मभूमि यही रहीं.. मेरी प्राथमिक शिक्षा गांव के ही सरकारी विद्यालय मे हुआ.. आगे चलकर.. 10 वीं मे स्कूल टॉपर रहा… फिर अन्य छात्रों की तरह मेरी भी इच्छा थी कि मैं भी इंजीनियर बनूँ… IIT में Admission मिले… लेकिन मुझे असफ़लता हाथ लगी.. मैं बहुत हतोत्साहित हुआ… फिर मैंने अपनी दिशा बदल लिया….. कहते है न.. 

” य़ह बुरा है या कि अच्छा, व्यर्थ दिन इस पर बिताना,
हो असंभव छोड़ य़ह पथ, दूसरे पर पग बढ़ाना” 
 
फिर, मैंने Math विषय के साथ स्नातक किया और वर्तमान मे IGNOU में इतिहास विषय से PG. कर रहा हूँ! 
ये रहीं हमारी शैक्षणिक पृष्ठभूमि… यानि” सिविल सर्विस ” के Examination को लेकर एक मिथक है.. शैक्षणिक पृष्ठभूमि को लेकर…. साधारण पृष्ठभूमि को लोग इसे नहीं कर सकते.. इसका मैं जीता जागता उदाहरण हूँ..! 
 
स्नातक के पश्चात ही सिविल सेवा के परीक्षा की तैयारी प्रारंभ की..!..तैयारी के क्रम में पटना मे अपने कुछ दोस्तों के माध्यम से   PYP- प्रांतीय युवा प्रकोष्ठ से जुड़ा!.. ये मेरे जीवन का  एक turning point रहा!… गुरु सत्ता के विषय में जानने का… समझने का.. और जुड़ने का सौभाग्य मिला!.. अब जीवन को एक नया आयाम और उदेश्य मिला था!
 
मित्रों यहां कुछ pyp के कुछ भाइयों ने मिलकर BSS- बाल संस्कार शाला, कुम्हरार को स्थापित किया! तकरीबन 300 बच्चों को निशुल्क शिक्षा, योग, ध्यान और अच्छे विचारों से जोड़ना.. बहुत ही शानदार अनुभव रहा!.. दिन के समय सिविल सेवा की तैयारी और शाम के वक्त BSS जैसी गतिविधियां मे..! 
 
दोस्तों.. मेरी पारिवारिक पृष्ठभूमि आर्थिक दृष्टिकोण से बहुत अच्छी नहीं थी.. तैयारी के क्रम में होम ट्यूशन भी करना पड़ता था.. फिर भी मेरे पिताजी ने कोई कसर नहीं छोड़ी…. माता पिता का आशीर्वाद…शिक्षकगण का मार्गदर्शन.. दोस्तों का सहयोग.. आदरणीय मनीष भैया की प्रेरणा और उत्साहवर्धन.. और गुरु सत्ता की कृपा से सफलता की पहली सीढ़ी चढ़ने मे सफल रहा!.. 
         
 तैयारी के क्रम में ही दिल्ली आना हुआ! दिल्ली में ही “Diya Delhi” से जुड़ने का सौभाग्य मिला! Diya Delhi के बारे में हमे पहले से ही जानकारी थी! दिया दिल्ली के गतिविधियों मे – बाल संस्कारशाला.., वृक्षारोपण,.. बुक स्टॉल,.. रविवार   मोटिवेशनल प्रोग्राम… सभी से जुड़ने का सौभाग्य मिला! ये मेरे जीवन का दूसरा” टर्निंग पॉइंट” था! जो प्रेम, स्नेह,सहयोग, मार्गदर्शन और Diya Delhi के  भाइयों और बहनों ने दिया है.. मैं उसे कभी भूल नहीं पाऊँगा!.. आदरणीय मनीष भैया.. पीयूष भैया.. विनय भैया.. चंचल bhaiya.. आदर्श जी.. ओंकार भैया..सुनैना दीदी… बसंत भैया.. किन किन का नाम लू.. सभी भाइयों एवं बहनों के साथ एक अद्भुत और स्वर्णिम यादे है! 
 
दोस्तों मुझे लगता है “सफलता एक यात्रा है! हम इसे जितना संघर्ष पूर्ण बनाएंगे य़ह उतना ही खूबसूरत होगा!……….संघर्ष सब के किस्मत मे नहीं होता! बल्कि, य़ह किस्मत वालों को ही मिलता है!”…. 
                      
प्रत्येक सफल व्यक्ति के संघर्ष की अपनी कहानी होती है! दोस्तों परिणाम भले ही एक हो लेकिन मायने ये भी रखता है कि हमने शुरुआत कहा से की है!… हमारा संघर्ष, हमारा मार्ग और हमारी यात्रा औरों से अलग कैसे है!.. 
     
Diya Delhi से जुड़ने के बाद भी दिनचर्या वही रहीं. दिनभर तैयारी और शाम का समय.. गुरु कार्य के नाम!.. फिर, निरंकारी BSS को संचालित किया.. समय समय पर वृक्षारोपण आदि गतिविधियों मे संलग्न रहा!….”युवा – अभ्युदय” जो     “दिया दिल्ली” का वार्षिक और निर्णायक कार्यक्रम है!.. हमारे लिए सबसे विशेष रहा…. विशेषकर ‘ दिल्ली यूनिवर्सिटी’ की खास यादें जुड़ी है! 
     
दोस्तों  ईन गतिविधियों का सबसे ज्यादा लाभ मुझे BPSC के साक्षात्कार मे मिला!.. ‘हॉबी’ मेरा पहले से ही तैयार था! साक्षात्कार के दौरान कुल समय का लगभग 25-30% समय हॉबी पर ही चला.. जो मेरे लिए बहुत ही सकारात्मक रहा!….साथ ही., साक्षात्कार के दौरान कुछ दिव्य अनुभूति भी रही है.. जिसमें मैं कुछ को साझा करना चाहूँगा.. आदरणीय मनीष bhaiya ने हमें बताया था.. कि बोर्ड मे  जाते समय से ही य़ह ध्यान रखना है कि आप अकेले नहीं है.. आपके पीछे दो और लोग खङे है!..गुरूदेव और माताजी.. यकीन मानिये चेहरे पर डर गायब एक अलग ही मुस्कान थी.. Piyush bhaiya ने हमे इंटरव्यू को imagine करने का तरीका बताया…. Vinay Bhaiya और sandeep bhaiya का भी काफी विशेष योगदान रहा!….. दोस्तों यही कारण रहा कि 64th BPSC के साक्षात्कार मे मैं सम्भवतः 2nd topper रहा!.. मुझे द्वितीय सर्वोच्च अंक प्राप्त हुआ!.. 
            
दोस्तों मुख्य परीक्षा के दौरान भी गुरुदेव के साहित्य काफी मददगार साबित हुए.. विशेष कर ‘अखंड – ज्योति’… य़ह न केवल शब्द – विन्यास को सही करने मे! बल्कि, भाषा,  संस्कृति, व अन्य एतिहासिक और वर्तमान तथा अन्य पहलुओं पर व्यापक समझ और दृष्टीकोण प्रदान करता है! 
 
और अंत में… मेरे मित्र जीवन  उतार – चढ़ाव का ही नाम है! कभी सफ़लता – कभी असफ़लता.. ये क्रम है! इससे घबराना नहीं चाहिए! मैं जब भी तैयारी के क्रम में हतोत्साहित हुआ… Meditation, अच्छे संगीत व कविता आदि का सहारा लिया करता था!.. दोस्तों से बात कर लिया करता था!… आखिरी मे.. 
 
          वह प्रदीप जो दिख रहा है, झिलमिल दूर नहीं है, 
         थककर बैठ गए क्या भाई, मंजिल दूर नहीं है! 
                               चिंगारी बन गयी लहू की, 
                                बूंद गिरी जो पग से, 
                                चमक रहे पीछे मुड़ देखो. 
                               चरण चिन्ह जगमग से! 
                              शुरू हुई आराध्य भूमि य़ह 
                             क्लांति नहीं रे राही, 
                                    और नहीं तो पाव लगे है, 
                                   क्यों पड़ने डगमग से? 
   बाकी होश तभी तक, जब तक जलता तूर नहीं हैं! 
    थककर बैठ गए क्या भाई, मंजिल दूर नहीं है! 
          अपनी हड्डी की मशाल से.,
          ह्रदय चीरते तम का, 
           सारी रात चले तुम दुःख 
          झेलते कुलिश निर्मम का 
          एक खेप है शेष किसी विधि 
          पार उसे कर जाओ, 
          वह देखो उस पार चमकता 
          है मंदिर प्रियतम का 
 आकर इतना पास फिरे वह सच्चा शुर नहीं है!, 
थककर बैठ गए क्या भाई, मंजिल दूर नहीं है! 
             दिशा दीप्त हो उठी प्राप्त कर 
            पुण्य प्रकाश तुम्हारा 
           लिखा जा चुका अनल अक्षरों 
          मे इतिहास तुम्हारा 
            जिस मिट्टी ने लहू पिया 
           वह फूल खिलाएगी ही 
          अम्बर पर धन बन छाएगा 
         ही उच्छ्वास तुम्हारा, 
            और अधिक ले जाच देवता इतना क्रूर नहीं है! 
             थककर बैठ गए क्या भाई मंजिल दूर नहीं है! 
 
          !!…. धन्यवाद….!! 

 – Gaurav Vatsal